Navaras - natyashastra - नवरस के 9 प्रकार
नवरस के 9 प्रकार की जानकारी.
दर्शकों और कलाकार के बीच का सेतु 'हित' है जो कलाकार कहना चाहता है। भाव को 'रुचि' तभी कहा जाता है जब दर्शक इसे महसूस करता है। तो चलिए आज हम उन नवरस के 9 प्रकार की जानकारी प्राप्त करते है जो दर्शकों और कलाकार के बीच सेतु 'हित' का कार्य करता है ।
उदाहरण : किसी फिल्म मे या खेलमें जब हम नायिका को रोते हुए देखते हैं तो हमारी आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह समझने के लिए कि हम करुणा में डूबे हुए हैं, कलाकार की कला का स्वाद वही है जो दर्शकों को पसंद आता है।
Navaras |
नाट्यशास्त्र के अनुसार केवल 8 रस थे जिसमे शांत रस को भी लिया गया ।
नवरस कुछ इस प्रकार है.
क्रम. | ( नव रस ) | ( स्थायी भाव ) |
---|---|---|
1. | श्रृंगार रस | रति |
2. | वीर रस | उत्साह |
3. | करुण रस | शोक |
4. | अदभुत रस | विस्मय |
5. | हास्य रस | हास |
6. | बिभत्स्य रस | जुगुप्सा |
7. | रौद्र रस | क्रोध |
8. | भयानक रस | भय |
9. | शांत रस | निर्वेद |
हर एक रस को अपना खुद का एक स्थायीभाव होता है , ये स्थायीभाव को उत्पन्न करने में 3 मददकार प्रकार है.
क्रम. | स्थायीभाव के प्रकार |
---|---|
1. | विभाव |
2. | अनुभाव |
3. | संचारी भाव |
(1) विभाव : भावनाओं के उद्भव का कारण विभाव है जो इसकी निर्भरता है, जैसे कि …
उदाहरण : नायक ओर नायिका के बीच प्रेम का उत्पन्न होने का कारण उसके गुण, चेष्टा ओर आसपास का वातावरण
(2) अनुभाव : कोई भी शारीरिक क्रिया के अनुसार लागनीओका प्रतिबिंब.
उदाहरण : नायिका या नायक द्वारा नायक को फूल देना, नायिका के बालों में लगाना.
(3) संचारी या व्यभिचारी भाव : यह भाव वह भाव है जो स्थायिभाव की ओर ले जाती है। ऐसे भाव हैं जो इसे एक निश्चित रूप देने में मदद करते हैं। चंचल होने के नाते यह धीरे-धीरे एक संचार मूल्य के रूप में एक निश्चित भाव की स्थिति में आता है और अंततः मूल रस उत्पन्न होता है।
(A) आलंबन : नायक या नायिका एक व्यक्ति है, यानी जिसके आधार पर एक निश्चित भाव उत्पन्न होता है।
(B) उद्विपन : कोई भी साधन जिसके द्वारा रस उत्पन्न होता है। अर्थात यह भाव जगाने का साधन है।
नवरस के 9 प्रकार की विस्तृत जानकारी.
1. श्रृंगार रस :
स्थायी भाव: रति
दो प्रकार हैं: (1) संगम (2) विप्रलभ
दो प्रकार हैं: (1) संगम (2) विप्रलभ
(1) संगम श्रृंगार :
विभाव : मौसम, फूल, आभूषण, एक प्यार के साथ संगम,
दर्शन, खेल, आदि….
अनुभाव :आंख को पकड़ने व्यंग्य, ठीक इशारों, आदि चुम्बन, गले, आदि के माध्यम से संगम के भाव जताते है
जैसे वसंत सेना -चारुदत्त
(2) विप्रालाभ श्रृंगार :
विभाव (आलंबन) : मौसम, फूल, गहने, एक प्रियजन के साथ
अनुभाव: ग्लानि, शंका, ईर्ष्या, श्रम, चिंता, जिज्ञासा, निंदा, स्वप्न, रोग, पागलपन आदि की भावनाएँ।
2. वीर रस :
विभाव : नय, विनय, प्राकृत, शक्ति, प्रताप, प्रभाव,जिसके पर विजय प्राप्त हुआ ।
अनुभाव: स्थिरता, शौर्य, धैर्य, परित्याग, गर्व, गति। उग्रता, रोमांच आदि चार मुख्य प्रकार के भगवान राम वीर युधिवीर, दानवीर, दयावीर, धर्मवीर हैं। इन चारों के अतिरिक्त, सत्यवीर, पंडितवीर आदि कई प्रकार के हैं, अर्थात रुद्रों का निरंतर मूल्य क्रोध है, जबकि रुद्रों की निरंतर भाव उत्साह है।
स्थायी भाव : शोक, शाप, कलह, विनाश, वैभव का नाश, वैराग्य, बंधन, दुःख, पुत्र - धन - वस्तु का नाश और साथ ही बुरी वस्तु का अधिग्रहण। ।
अनुभव : भाग्य की निंदा, जमीन पर दस्तक, घुटन, ढीले अंग, मनोभ्रंश।
संचारी : निरवेद, ग्लानी, चिंता, संक्रमण, श्रम, विषाद, स्तंभ, आँसू, स्वरभेद..
स्थायी भाव: विस्मय:
विभाव : दिव्य दृष्टि, मनोरथसिद्धि, सुंदरवन, इंद्रजालआदि देखना।
अनुभाव: आश्रू, श्वेद नयन -विस्तार
संचारी : अश्रु, स्तम्भ, स्वेद, गदगद, संभ्रम
स्थायी : हँसी (हसना)
विभाव : विकृत आकार के नट, दुस्साहस, कटाक्ष, दृष्टि आदि।
अनुभाव : आलसी, नींद, स्वप्नदोष, ईर्ष्या आदि।
3. करुण रस :
अनुभव : भाग्य की निंदा, जमीन पर दस्तक, घुटन, ढीले अंग, मनोभ्रंश।
4. अदभुत रस :
विभाव : दिव्य दृष्टि, मनोरथसिद्धि, सुंदरवन, इंद्रजालआदि देखना।
अनुभाव: आश्रू, श्वेद नयन -विस्तार
5. हास्य रस :
विभाव : विकृत आकार के नट, दुस्साहस, कटाक्ष, दृष्टि आदि।
अनुभाव : आलसी, नींद, स्वप्नदोष, ईर्ष्या आदि।
हँसी के कुल 6 प्रकार हैं।
(i) मुस्कुराहट: होंठों का चौड़ा होना, आँखों का संकुचित होना आदि। भगवान राम की मुस्कान (देवी की मुस्कान)
(ii) सहज: (इर्षतविकासींनयनम मुस्कान) इस तरह से हंसें कि कुछ दांत दिखाई दें लेकिन कोई आवाज नहीं। जैसे लक्ष्मण, बलराम, मुग्धा की मुस्कान
(iii) विहसित: (मधुर स्वर विहसित) एक मधुर स्वर में हंसना
उदाहरण : सखी के वृन्द में शकुंतला
(iv) उपहसित: (शोषन शिर: कम्पतो अवहसित) सिर का कंपन। एक सामान्य मजाक पर हँसना
(v) हँसी: (स्वस्थश्रम) हँसी आँसुओं के साथ। जैसे एक शराबी की हंसी
(vi) अतिशीट: (विस्त्पाकुम भवत्यतिशीतम्) अत्थास्य उदा। रावण, कंस आदि ....
ये छह प्रकार की हँसी भी इस प्रकार विभाजित हैं।
(A) सीनियर (सर्वश्रेष्ठ चरित्र के लिए): सस्मित और हसित
(B) मिडिल (मिडिल कैरेक्टर के लिए): विहसित और उपासित
6. बिभत्स्य रस :
विभाव : वास, मल, दुर्गंध वाला मांस, रक्त आदि।
उद्विपन : कीड़े पड़ने
ये रस कभी भी प्रधान रस के खातिर नही आ सकता
अनुभाव : थूकना , मुख मोड़ना , आखो मिचना , नाक घुमाना आदि
7. रौद्र रस :
आलम्बन : विभाव - शत्रु
उद्विपन विभाव : वर्तन - चेष्टा
अनुभाव :ओष्ठ पिसना , आंखे बड़ी करना , गर्व दिखाना , भृकुटि वक्र करना
उदाहरण : जैसे दुशासन ने द्रौपदी का अपमान किया - युद्ध जारी है - द्रोणाचार्य की हत्या के बाद अश्वत्थामा को गुस्सा आ गया।
8. भयानक रस :
आलंबन : सांप, बाघ, भयानक आदमी, उजाड़ जगह जहां से वह चीज दिखाई देती है जिससे डर लगता है।
उद्विपन: सांप के खुर, टाइगर की दहाड़, कुर् आदमी की मजबूत भावना
9.शांत रस :
विभाव : संतुष्टि, मोक्षगति
अनुभाव : स्थितप्रज्ञ , स्थिरता , समाधि , ध्यान मुनिजन
संचारी : स्तंभ
उदाहरण : मुनिजन
अतः नाट्यशास्त्र में कुल मिला के 9 रस का वर्णन किया गया है।
श्रृंगार क्षिति नन्दिनी विहरने
(माता सीता विचरण के अवसर पर)
2.वीर रस
विरं धनुरभरजने
(शिवजी का धनुष तोड़ने के अवसर पर)
3.करुण रस
कारुण्य हनुमंत
(हनुमान को देख कर)
4.अदभुत रस
अदभुतरसं सिधौगिरी स्थापने
(समुद्र पर पत्थर का सेतु खड़ा करने के अवसर पर)
5.हास्य रस
हास्यम सूर्पनखा मुखे
(रावण की बहन सूर्पनखा के नाक काटने के अवसर पर)
6.बिभत्स्य रस
बिभात्स्य अन्या मुखे
(परस्त्री के साथ दुराचरण करते व्यक्ति को देखते हुए)
7.रौद्र रस
रौद्र रावण मर्दन
(रावण वध के अवसर पर)
8.भयानक रस
भय मुखे
(पाप दृष्टिमान होते हुए)
9.शांत रस
मुनि जने शांत वपु पानून
(श्री राम का उसके परम साधु भक्त को देख के)
तो दोस्तों , नाट्यशास्त्र में - नवरस - का वर्णन इस - 9 प्रकार किया गया है।
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Supperb 👌🏻
जवाब देंहटाएंVahhh vahhh Good going 👍🏻
जवाब देंहटाएंsuperb
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंAWESOME
जवाब देंहटाएंThat's awesome!💯
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